*जैसा चित्र तुम्हारा गुरुवर!* (मार्मिक हिन्दवी-कविता)
*जैसा चित्र तुम्हारा गुरुवर!*
(मार्मिक हिन्दवी-कविता)
✍🏻 *प्रो सुदीप कुमार जैन, नई दिल्ली*
*जैसा चित्र तुम्हारा मेरी आँखों में है,*
*वैसा चित्रण करने के अल्फाज़ नहीं हैं।*
*जैसा जीवन तुमने जिया है गुरुवर!*
*वैसा अब तक किया आगाज़ नहीं है।।1।।*
*जैसी ध्वनि तुम्हारी गूँजी थी अनुदिन,*
*अब तक पायी मैंने वह आवाज़ नहीं है।।*
*जितनी ऊँचाई तक तुम उड़े यहाँ थे,*
*उतने तो पाये मैंने परवाज़ नहीं है।।2।।*
*इसीलिये मैं तुम्हारा अनुचर हूँ अब तक,*
*जब तक अपनाया तुम्हारा साज़ नहीं है।।*
*जो गीत तुम्हारे स्वरों में लरज़े थे गुरुवर!*
*वैसा तो बन पाया मेरा अंदाज़ नहीं है।।3।।*
*ज्ञायक की मस्ती तुम्हारे वचनों में थी,*
*उनको दुहराने में मुझे कोई लाज नहीं है।*
*वस्तु तुम्हारी तुम्हें समर्पित करने को,*
*मुझे अभी मिले नये अल्फाज़ नहीं हैं।।4।।*
*लाख संवारा शब्दों को, स्वर को संजोया,*
*पर अपनी नज़रों में बना सरताज़ नहीं है।*
*साज़ संवारे मंच सजाये मैंने अब तक,*
*किन्तु हृदय में सीधे उतरा नाज़ नहीं है।।5।।*
[विशिष्ट शब्दों के सरल-अर्थ:-- अल्फाज़=शब्द, आगाज़=शुरूआत, आवाज़=ध्वनि/लय, परवाज़=उड़ान, साज़= वाद्ययन्त्र, अंदाज़= कहने की शैली, लाज=लज्जा/शर्म, सरताज= आदर्श, नाज़= वह मुद्रा, जो सीधे मन में बस जाये।]
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