*वीरस्स णिव्वुदि-दिणं हु सुहावहं णो* (प्राकृतभाषा-निबद्ध कविता)
*वीरस्स णिव्वुदि-दिणं हु सुहावहं णो*
(प्राकृतभाषा-निबद्ध कविता)
✍🏻 *प्रो. सुदीप कुमार जैन, नई दिल्ली*
[आज शासन-नायक चरम-तीर्थंकर भगवान् श्री महावीर स्वामी का 2547 वाँ पावन-निर्वाण-दिवस है। उनके इस पुनीत-प्रसंग पर उनके सदुपदेशों की माध्यम एवं जिनागमों की भाषा प्राकृतभाषा में निबद्ध एवं हिन्दी-पद्यानुवाद-सहित यह विनयांजलि आप सबको 'वीर-निर्वाण-दिवस' के वर्धापन-सन्देश-स्वरूप प्रेषित है। ]
*सिद्धत्थरायस्स गिहे सुजम्म-गहीदं,*
*पियकारिणीए तं पियसुदं णमामि।*
*पंच-सुणामेहिं जगे सुविक्खादजादं,*
*वीरं जिणं णु अहं सविणयं सरामि।।1।।*
_[सिद्धार्थ राजा के महल में जो थे जन्मे,_
_नमन करूँ उन प्रियकारिणी-सुपुत्र को।_
_पाँच-नामों से जो विख्यात हुये जग में,_
_सविनय मैं सुमरूँ उन वीर-जिनेन्द्र को।। 1।।]_
*वेरग्गभाव-महिदो बालवये हि जो णं,*
*णियरूव-भाव-सुरदो जो सु-वड्ढमाणो।*
*'बालजदी'-रूवे जो सुविक्खाद जादो,*
*वीरं जिणं सुमहिदं सविणयं णमामि।।2।।*
_[बालवय में हुये जो वैराग्यभाव-मंडित,_
_निज-स्वभाव-साधन से वर्धमान थे जो।_
_'बालयति' के रूप में विख्यात हुये हैं जो,_
_सविनय प्रणमूँ मैं उन महावीर -जिन को।।2।।]_
*जस्स सुजम्मदिवसो 'वीरसंवद'-सरूवं,*
*पढमोवदेसण-दिणं पि सासणं संवद।*
*लोगे सदा सुमहिदो परिणिव्वाणदिवसो,*
*णिव्वाण-संवदरूवे जिणणाह! तुह हि।।3।।*
_[ जिनका जन्मदिन 'वीर-संवत्' स्वरूपी,_
_प्रथम-देशना-दिन 'शासन-संवत्' बना है।_
_परिनिर्वाण-दिन हुआ प्रसिद्ध लोक में,_
_'वीर-निर्वाण-संवत्'के रूप में हे जिनवर!!3।।]_
*कत्तिग-सुमासे मावस-तिहीए पढमे,*
*पहरे जेण जोग-णिरोहो पच्चूसकाले।*
*णिव्वाण-लाह-गहिदो सुसिद्धिलाहो,*
*वीरस्स णिव्वुदि-दिणं हु सुहावहं णो।।4।।*
_['कार्तिक' शुभ-माह में मावस-तिथि को,_
_योग निरोधा पहले-पहर प्रत्यूष-काल में।_
_निर्वाणलाभ पाया सिद्धगति भी पायी,_
_निर्वाण का शुभ-दिन सुखद हो सभी को।।4।।]_
*संपर्क दूरभाष :8750332266*
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