*मूल-जिनागम में आराध्य के रूप में 'शांति' /शांतिनाथ का उल्लेख* *"थोस्सामि हं जिणवरे,

 *मूल-जिनागम में आराध्य के रूप में 'शांति' /शांतिनाथ का उल्लेख*


*"थोस्सामि हं जिणवरे,*
      *तित्थयरे केवली अणंतजिणे |*
*णर-पवर-लोग-महिदे,*
     *विहुय-रय-मले महप्पण्णे ||1||*
*लोगस्सुज्जोयकरे,*
            *धम्मं तित्थंकरे जिणे वंदे |*
*अरिहंते कित्तिस्से,*
        *चउवीसं तेव केवलिणो ||2||*
*उसहमजियं च वंदे,*
     *संभवमभिणंदणं च सुमदिं च |*
*पउमप्पहं सुपासं,*
            *जिणं च चंदप्पहं वंदे ||3||*
*सुविहिं च पुप्फदंतं,*
        *सीयल-सेयं च वासुपुज्जं च|*
*विमलमणंतं भगवं,*
            *धम्मं संतिं च वंदामि|| 4||*
*कुंथुं च जिणवरिंदं,*
  *अरं च मल्लिं च सुव्वयं च णमिं |*
*वंदामि रिट्ठणेमिं,*
           *तह पासं वड्ढमाणं च||5||*
*एवं मए अभित्थुदा,*
*विहुय-रयमला पहीण-जरमरणा |*
*चउवीसं पि जिणवरा,*
           *तित्थयरा मे पसीदंतु||6||*
*कित्तिय वंदिय महिया,*
         *एदे लोगुत्तमा जिणा सिद्धा|*
*आरोग्ग-णाण-लाहं,*
          *दिंतु समाहिं च मे बोहिं||7||*
*चंदेहिं णिम्मलयरा,*
       *आदिच्चेहिं अहिय-पयासंता|*
*सायरमिव गंभीरा,*
        *सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु||8||*

       ----( 'चउवीस-तित्थयर-थुदि' का शुद्ध मूल प्राकृत-पाठ।
*आचार्य कुन्दकुन्द देव विरचित 'दसभत्तिसंगहो' से उद्धृत*)
*प्रस्तुति : प्रो. सुदीप कुमार जैन, नई दिल्ली*

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