धण्णा जादा अज्ज जा तेरस* *(आज की तेरस, धन्य हो गयी)* (मार्मिक प्राकृत-कविता, हिन्दी-पद्यानुवाद सहित )

 *धण्णा जादा अज्ज जा तेरस*

*(आज की तेरस, धन्य हो गयी)*
(मार्मिक प्राकृत-कविता, हिन्दी-पद्यानुवाद सहित )
✍🏻 *प्रो. सुदीप कुमार जैन, नई दिल्ली*

*धण्णा जादा अज्ज जा धरदी,*
          *सिरि-वीरप्पहु-संणिहाणदो।*
*भविजीवाणं सुह-मंगल जादो,*
    *दिव्वज्झुणि-सुह-सण्णाददो।।*
(धन्य हो गयी आज ये धरती,
        श्री-वीरप्रभु के सन्निधान से।
भव्यजनों का शुभ-मंगल हुआ,
      दिव्यध्वनि के शुभ-सन्नाद से।।)
*वइसाह-सुक्क-दहमी-दिवसे,*
      *कइवल्लं लद्धो सिरिवीरजिणेहिं।*
*छावट्ठि-दिण-पच्छा दिव्वज्झुणि जादा,*
        *गणहर-संजोगे भविजीव-णियोगे।।*
(बैशाख-शुक्ल-दसमी के दिन,
      कैवल्य थे पाये श्री वीर-जिनेश्वर।
देशना हुई थी छियासठ-दिन पीछे,
      गणधर-संयोगे भविजीव नियोग से।।)

*बारस-वरिसं दिव्वज्झुणि झरिदा,*
      *सव्वे भविजीवा संतित्ता जादा।*
*भव्व-जणाणं अब्भुदय जादो,*
    *तच्चणाण-सुह-प्पणिधाणदो।।*
(बारह-वर्षों तक खिरी दिव्यध्वनि,
      भव्यजीव सभी संतृप्त हो गये।
भव्यजनों का अभ्युदय हो गया,
    तत्त्वज्ञान के शुभ-प्रणिधान से।।)

*ता कत्तिगमासे तेरसीए तिहीए,*
      *चरमा-झुणि जादा भविजण-सामिद्धी।*
*णाणोदय-लच्छी सव्वे संगिहीदा,*
      *धण्णो हि जादो तेरह-गुणथाणो।*
(कार्तिक मास की तेरस-तिथि को,
    अन्तिम-ध्वनि गर्जी भव्यों की ऋद्धि।
ज्ञानोदय की लक्ष्मी सबने ही संजोयी,
      तेरहवें गुणथान का पल धन्य हो गया।।)

*धण्णा खलु जादा अज्ज सा तेरस,*
      *भविजण सामिद्धा जिण-णाण-णिहीए।*
*जिणदंसण-लद्धो णरभव-सोहग्गो,*
    *चरमे सुहकाले सिवमग्गो लद्धो।।*
(धन्य हो गयी, आज यह तेरस,
        भविजन धनी हुये जिन-ज्ञान-निधि से।
जिनदर्शन पाया नरभव सौभाग्य जो,
      शुभकाल के अंत में शिवमार्ग भी पाया।।)

*अदो धण्णा मण्णा कत्तिगीए तेरसी,*
    *धणतेरस-रूवे जाए तिहीए पदिट्ठा।*
*"धण्ण-तेरस धण्ण-तेरस" कहिदा सव्वेहिं,*
      *धण्णत्तणस्स य णादो, गुंजिदो णहमंडले।।*
(इसीलिये धन्य मानी गयी कार्तिकी तेरसी,
      'धन्य-तेरस' रूप में यह तिथि प्रतिष्ठित हुई।
"धन्य-तेरस धन्य-तेरस" कही सभी के द्वारा,
      धन्यपने का नाद नभमंडल में गुँजा दिया।।)

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