पंचसत्ततितम-सातंत-दिवसस्स मंगलभावणा*🇮🇳 [ पचहत्तरवें स्वातन्त्र्य-दिवस की मंगलभावना] (प्राकृतभाषा-निबद्ध कविता)
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🇮🇳 *पंचसत्ततितम-सातंत-दिवसस्स मंगलभावणा*🇮🇳
[ पचहत्तरवें स्वातन्त्र्य-दिवस की मंगलभावना]
(प्राकृतभाषा-निबद्ध कविता)
*भरहस्स अज्ज सोहग्गं,*
*भरहे जादा साहीणदा।।*
*भरहाणं पमोदप्पसंगो य,*
*परिवज्जिदा हि दासदा।।*
(भारत का आज सौभाग्य जागा,
भारतवर्ष ने पायी थी स्वाधीनता।
भारतीयों का आनन्द-अवसर यह,
दासता का आज परित्याग किया।।)
*ण हि लद्धा अज्ज वि भरहे,*
*वेदेसिग-संकिदा साहीणदा।*
*अज्ज वि वेचारिगं दासत्तणं,*
*मग्गदे णवविहा साहीणदा।।*
(किन्तु आज भी भारतीयों ने न पायी,
विदेशी-संस्कृति से स्वाधीनता।
आज भी वैचारिक-दासत्व से भारत,
खोज रहा है नव-विधा स्वाधीनता।।)
*सव्वे वि भरहा लहदु सिग्घं,*
*णिय-संकिदाए साहीणदा।*
*ता लहदु य अणुहवदु सव्वे,*
*साहीणदाए सु-सहलत्तणं।।*
(सभी भारतीय शीघ्र ही पायें,
निज-संस्कृति की स्वाधीनता।
जिससे पा सकें अनुभवें सभी,
स्वाधीनता की शुभ-सफलता।।)
*सीलस्सेसा वण्णिदा महिमा,*
*भरहे सासदी सव्वत्थ वित्थिदा।*
*कोंडकुंडायरियेण वि लिहिदा,*
*सीलेण विणा ण हि साहीणदा।।*
('शील' की वर्णित दिव्य-महिमा,
भारत में सदा से सर्वत्र विस्तृत।
कुन्दकुन्दाचार्य ने भी लिखा* है,
'शील' बिना नहिं संभव स्वाधीनता।।)
*"साहीणो हि विणासो, कुसील-संसग्ग-रागेण।"
(शीलरहित-लोगों से संसर्ग एवं राग करने से स्वाधीनता का विनाश होता है)
_सीलपाहुड_
🌷 *सव्वेसिं साहीणदा-दिवसस्स हादिक्कं वड्ढावणं सुहासंसणं च*🌷
(आप सभी को स्वाधीनता-दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामना)
✍🏻 *प्रो. सुदीप कुमार जैन, नई दिल्ली*
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