जिनेश्वरी-दीक्षा अपनाने से पहले.. (मार्मिक हिन्दी कविता)

 जिनेश्वरी-दीक्षा अपनाने से पहले..

 (मार्मिक हिन्दी कविता)
   *प्रो. सुदीप कुमार जैन, नई दिल्ली*

*जिनेश्वरी-दीक्षा अपनाने से पहले,* 
          *अरे भव्य! तुमको जरा सोचना है।* 
*निर्ग्रन्थ-मुद्रा के धारण से पहले,* 
          *अरे ओ विरागी! तुम्हें तौलना है।।1।।* 
*जिनके संग जीवन बिताया है तुमने,*
        *उनसे अपरिचितवत् अनुभवो सदा।*
*वीतरागी नहीं बन सको भले तुम,*
       *वीतरागता को तो अब समझो भला।।2।।*
*वैराग्य-वृत्ति जब प्रकटे हृदय में,*
       *विषयों की रुचि भी जगे नहिं कदा।*
*पर से विमुख होके निज में समाने,* 
       *की मन में भरी हो अदम्य-भावना।।3।।*
*हड़बड़ी न करना न ही तुम डरना, 
      *यह मुनिधर्म तुमको स्वयं पालना है।*
*कर्मों का ईंधन जोड़ा जो युगों से,*
     *परम-साधना से तुम्हें उसे बालना है।।4।। 
*निर्णय में तुम्हारे कचासा नहीं हो,*
     *अतः अपने मन को तुम्हें ही गोंचना है।*
*जिनेश्वरी-दीक्षा अपनाने से पहले,*
       *अरे भव्य! तुमको तनिक सोचना है।।5।।*
*भावों को तब तक भविक! दे़खो,*
      *उनकी गहनता को परखो खुद जरा।*
*अपनी पुस्तिका को तुम खुद ही,*
      *सजग-ईमानदारी से जाँचो बन खुदा।।6।।*

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